धर्म
भोग चढ़ाने के ये 12 नियम बदल देंगे आपकी पूजा का फल, आज ही जान लें
देवताओं को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को नैवेद्य कहा जाता है। इसे भोग, प्रसाद या प्रसादी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्रद्धा और विधि-विधान से अर्पित किया गया नैवेद्य भक्त और भगवान के बीच आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करता है।
देवताओं को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को नैवेद्य कहा जाता है। इसे भोग, प्रसाद या प्रसादी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्रद्धा और विधि-विधान से अर्पित किया गया नैवेद्य भक्त और भगवान के बीच आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करता है। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं देवताओं को नैवेद्य अर्पित करने के महत्वपूर्ण नियम, जिन्हें अपनाकर आप भगवान की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
नैवेद्य चढ़ाने के 12 प्रमुख नियम
देवता को निवेदित किया गया अन्न ही नैवेद्य कहलाता है। प्रसाद के रूप में दूध-शक्कर, मिश्री, शक्कर-नारियल, गुड़-नारियल, फल, खीर तथा पका हुआ भोजन प्रमुख रूप से अर्पित किया जाता है।
सभी तैयार व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा भाग मंत्रोच्चार के साथ अग्निदेव को समर्पित करें। इसके बाद देव आचमन के लिए पुनः जल का छिड़काव करें और हाथ जोड़कर नमन करें।
- नैवेद्य पीतल की थाली या केले के पत्ते पर ही परोसा जाना चाहिए।
- प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखना शुभ माना जाता है।
- नैवेद्य की थाली को तुरंत भगवान के सामने से नहीं हटाना चाहिए। कुछ समय तक उसे वहीं रहने दें।
- भगवान शिव के नैवेद्य में तुलसी की जगह बेलपत्र और भगवान गणेश के नैवेद्य में दूर्वा अर्पित की जाती है।
- नैवेद्य देवता के दक्षिण भाग में रखना शास्त्रसम्मत माना गया है।
- कुछ ग्रंथों के अनुसार पका हुआ नैवेद्य देवता के बाईं ओर और कच्चा नैवेद्य दाईं ओर रखना चाहिए।
- भोग लगाने से पहले भोजन और जल अग्नि के समक्ष रखें, फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल का छिड़काव करें।
- नैवेद्य में नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग वर्जित माना गया है।
- नमक के स्थान पर मिष्ठान्न (मिठाई) अर्पित करना शुभ होता है।
- भोजन के अंत में बचा हुआ भोग गाय, कुत्ते और कौए को देना शास्त्रों में पुण्यकारी बताया गया है।




