देश में POCSO मामलों का विस्फोट, वर्षों से अदालतों में अटके 35 हजार से ज्यादा केस
देश में बच्चों के खिलाफ अपराधों की सुनवाई की रफ्तार बेहद धीमी बनी हुई है। ताजा सरकारी आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि पॉक्सो कानून (POCSO Act) के तहत 35,434 से अधिक मामले दो साल से ज्यादा समय से देशभर की अदालतों में लंबित हैं।
नई दिल्ली. देश में बच्चों के खिलाफ अपराधों की सुनवाई की रफ्तार बेहद धीमी बनी हुई है। ताजा सरकारी आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि पॉक्सो कानून (POCSO Act) के तहत 35,434 से अधिक मामले दो साल से ज्यादा समय से देशभर की अदालतों में लंबित हैं। यह जानकारी लोकसभा में दिए गए लिखित जवाब से सामने आई है। आंकड़े बताते हैं कि कई बड़े राज्यों में लंबित मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
UP में सबसे ज्यादा लंबित मामले, महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर
वर्ष 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार—
- उत्तर प्रदेश: 10,566 केस (सबसे ज्यादा)
- महाराष्ट्र: 7,962
- पश्चिम बंगाल: 2,003
- तमिलनाडु: 1,910
- मध्य प्रदेश: 1,736
इन राज्यों में वर्षों से हजारों पीड़ित बच्चों को न्याय का इंतजार है।
अन्य राज्यों में भी चिंताजनक स्थिति
अन्य राज्यों के आंकड़े भी हालात की गंभीरता दर्शाते हैं—
- छत्तीसगढ़: 375
- राजस्थान: 224
- बिहार: 1,079
- झारखंड: 315
- हरियाणा: 606
- पंजाब: 152
- उत्तराखंड: 374
- हिमाचल प्रदेश: 101
- चंडीगढ़: 16
8 साल में कई गुना बढ़े पेंडिंग केस
2015 की तुलना में 2023 तक लंबित मामलों में भारी उछाल देखने को मिला है—
- यूपी: 26 से बढ़कर 10,566
- महाराष्ट्र: 48 से 7,962
- पश्चिम बंगाल: 55 से 2,003
- तमिलनाडु: 2 से 1,910
- मध्य प्रदेश: 0 से 1,736
यह आंकड़े साफ दिखाते हैं कि न्याय प्रणाली पर भारी दबाव बना हुआ है।
5 साल में 4.5 लाख से ज्यादा POCSO केस दर्ज
2021 से 2025 के बीच देश में 4.5 लाख से अधिक POCSO केस दर्ज किए गए। इनमें—
- उत्तर प्रदेश: 1,31,692 केस
- महाराष्ट्र: 76,409
- मध्य प्रदेश: 32,548
- तमिलनाडु: 39,099
- गुजरात: 31,617
पूर्वोत्तर राज्यों मिजोरम, नगालैंड, लद्दाख और अंडमान-निकोबार में सालाना 0 से 11 के बीच ही मामले दर्ज हुए।
फास्ट ट्रैक कोर्ट से कुछ राहत, फिर भी बोझ बना
देश में फिलहाल 773 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट कार्यरत हैं, जिनमें से 400 अदालतें सिर्फ POCSO मामलों की सुनवाई करती हैं।
सितंबर 2025 तक इन अदालतों ने 3.5 लाख से अधिक मामलों का निपटारा किया है। केंद्रीय कानून मंत्री ने बताया कि पहली बार 5 और 10 साल का राज्यवार डेटा एक साथ संसद में पेश किया गया है।
देरी की बड़ी वजह क्या?
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक—
- पुलिस जांच में देरी
- साक्ष्य संग्रह में कठिनाई
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं की सुस्ती
गवाहों की कमी
ये सभी कारण मिलकर मामलों को लंबित बना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ अदालतों की संख्या बढ़ाने से समाधान नहीं होगा, बल्कि पुलिस, प्रशासन और समाज—तीनों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे।
सरकार ने अन्य योजनाओं पर भी दी जानकारी
संसद में यह भी बताया गया कि—
- काला धन अधिनियम, 2015 के तहत 1,087 विदेशी अघोषित संपत्तियों पर 40,564 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
- ‘स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान’ के तहत 62 लाख गर्भवती महिलाओं की जांच और 96.5 लाख किशोरियों को माहवारी स्वच्छता पर काउंसलिंग दी गई।
- इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम अब AI टूल्स से बीमारियों के शुरुआती संकेत पकड़कर तत्काल अलर्ट जारी कर रहा है।




