थाईलैंड में बसता है राम का आदर्श राज्य, संस्कृति में रची-बसी रामायण
थाईलैंड में राम परंपरा, राजा को भगवान का प्रहरी मानने की संस्कृति, बौद्ध मठों में शाही प्रतिमाएं और भारत से आए बोधि वृक्ष के साथ बहुधार्मिक सौहार्द की अनूठी कहानी।
थाईलैंड को भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से गहराई से जुड़ा देश माना जाता है। यहां एक तरह से राम राज्य की अवधारणा देखने को मिलती है। थाईलैंड के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है, लेकिन खास बात यह है कि भगवान राम के नाम या परंपरा को लेकर यहां किसी तरह का धार्मिक विद्वेष या असहिष्णुता नहीं है। बहुधार्मिक समाज होने के बावजूद थाईलैंड में सांस्कृतिक समन्वय की मजबूत मिसाल देखने को मिलती है।
राजा को माना जाता है ‘भगवान का प्रहरी’
थाई संस्कृति में राजा को भगवान का प्रहरी (संरक्षक) माना जाता है। बौद्ध मतावलंबी बहुल आबादी वाले इस देश में बौद्ध मठों के साथ-साथ हिंदू मंदिरों और गिरिजाघरों में भी भगवान की प्रतिमाओं और चित्रों के दोनों ओर सैन्य वेशभूषा में थाई नरेश की मूर्तियां या चित्र लगाए जाते हैं। इन्हें भगवान के रक्षक के रूप में देखा जाता है, जो भारतीय परंपरा से जुड़े काशी नरेश की अवधारणा की याद दिलाते हैं।
नौवें राम की पदवी और संवैधानिक लोकतंत्र
थाईलैंड में नरेश ऊदयादेव को नौवें राम की पदवी दी गई थी। देश में वर्ष 1932 में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना हुई, लेकिन इसके बावजूद राजपरिवार को अत्यंत सम्मान और श्रद्धा प्राप्त है। भगवान राम के वंशज माने जाने वाले थाई नरेशों को निजी या सार्वजनिक रूप से विवाद अथवा आलोचना के दायरे में नहीं लाया जा सकता। वे आज भी पूजनीय माने जाते हैं।
शाही सम्मान की परंपरा
थाई शाही परिवार के सदस्यों के सामने आम नागरिक सीधे खड़े होकर सम्मान प्रकट नहीं कर सकते। परंपरा के अनुसार, उन्हें झुककर खड़ा होना पड़ता है। 75 वर्षीय काशी नरेश (राम परंपरा के प्रतीक) को आधुनिक थाईलैंड का निर्माता माना जाता है। वे वैज्ञानिक सोच रखने वाले, चित्रकला में दक्ष और अंग्रेजी संगीत के मर्मज्ञ रहे हैं। थाईलैंड की राजनीतिक व्यवस्था में उन्हें स्थायित्व के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
उत्तराधिकारी और शाही परिवार
राजकुमार महाकाशी रांगलोंजकोर्स थाई नरेश के उत्तराधिकारी हैं। उनकी तीन पुत्रियां हैं, जिनमें से एक को हिंदू धर्म की अच्छी जानकार माना जाता है। यह तथ्य थाई शाही परिवार के भारतीय सांस्कृतिक जुड़ाव को और मजबूत करता है।
बहुधार्मिक समाज में सांस्कृतिक समन्वय
लगभग 6 करोड़ 20 लाख की आबादी वाले थाईलैंड में करीब 94 प्रतिशत लोग बौद्ध मतावलंबी हैं। शेष चार प्रतिशत आबादी में मुसलमान, ईसाई, हिंदू और अन्य मतावलंबी शामिल हैं। इसके बावजूद देश में धार्मिक सौहार्द और आपसी सम्मान की परंपरा स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।
बौद्ध मठों में राजा की प्रहरी प्रतिमाएं
थाईलैंड के कई बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के दोनों ओर सैन्य वेशभूषा में थाई नरेश की प्रतिमाएं प्रहरी के रूप में स्थापित हैं। यह दृश्य विदेशी सैलानियों को विशेष रूप से आकर्षित करता है और उन्हें थाई संस्कृति की अनूठी परंपरा से परिचित कराता है।
चिआंग माशी मठ और भारत से आया बोधि वृक्ष
चिआंग माशी स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के दोनों ओर थाई नरेश की सैन्य वेशभूषा में सुसज्जित प्रहरी प्रतिमाएं हैं। इस मठ की विशेष पहचान यहां स्थित विशाल बोधि वृक्ष है, जिसे भारत से लाकर थाईलैंड के तीन प्रांतों में रोपा गया था। भारत से आए श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस पवित्र बोधि वृक्ष के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं।
अभिवादन की अनोखी थाई परंपरा
थाई संस्कृति की एक और खास विशेषता है स्त्रियों और पुरुषों के लिए अलग-अलग अभिवादन शब्द। यदि कोई थाई महिला स्वागत करती है तो वह हाथ जोड़कर “स्वाकी रक्षा” कहती है, जबकि पुरुष “स्वाकी कास” कहकर अभिवादन करते हैं। यह परंपरा थाई सामाजिक शिष्टाचार का अहम हिस्सा है।




