साधना की पूर्णता का प्रतीक है 108, जानिए इसका महत्व
हिंदू धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं में 108 का विशेष महत्व माना गया है। जप-माला, मंत्रोच्चार और साधना में 108 संख्या को परम पवित्र और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
हिंदू धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं में 108 का विशेष महत्व माना गया है। जप-माला, मंत्रोच्चार और साधना में 108 संख्या को परम पवित्र और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। इसके पीछे धार्मिक, दार्शनिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
अंकों का आध्यात्मिक अर्थ
- अंक 1 उस ईश्वर का प्रतीक है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश—तीनों देवता समाहित हैं। कार्य रूप में भिन्न होते हुए भी ये तीनों एक ही तत्व हैं।
- अंक 0 (शून्य) निर्गुण-निराकार ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है।
- अंक 8 में संपूर्ण प्रकृति का समावेश है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार—ये आठ तत्व भगवान की प्रकृति हैं।
अंक शास्त्र और नवग्रहों का संबंध
अंक शास्त्र के अनुसार 1 से 9 तक के अंक नवग्रहों के प्रतीक हैं। 108 (1+0+8 = 9) के माध्यम से मनुष्य सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति, ईश्वर दर्शन और ब्रह्म तत्व की अनुभूति कर सकता है। इसी कारण 108 को पूर्णता और आध्यात्मिक संतुलन का अंक माना गया है।
सांसों और माला के 108 दानों का संबंध
मान्यता है कि 24 घंटों में एक व्यक्ति औसतन 21,600 बार सांस लेता है। इनमें से लगभग 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटे देव आराधना के लिए माने जाते हैं।
अर्थात लगभग 10,800 सांसें ईश्वर स्मरण के लिए उपयुक्त होती हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप से इतना समय देना सभी के लिए संभव नहीं है। इसलिए आचार्यों ने अंतिम दो शून्य हटाकर 108 सांसों में ही प्रभु स्मरण की व्यवस्था बताई। इसी आधार पर माला में 108 दानों की परंपरा स्वीकृत हुई।
सूर्य, कलाएं और 108 का रहस्य
एक अन्य मान्यता के अनुसार, सूर्य एक वर्ष में 2,16,000 कलाएं बदलता है। सूर्य छह-छह महीने उत्तरायण और दक्षिणायन में रहता है। इस प्रकार छह महीने में सूर्य की कुल कलाएं 1,08,000 होती हैं। अंतिम तीन शून्य हटाने पर 108 संख्या प्राप्त होती है। इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की एक-एक कला के प्रतीक माने जाते हैं।
राशि, ग्रह और नक्षत्रों से संबंध
ज्योतिष शास्त्र में 108 को 12 राशियों और 9 ग्रहों से जोड़ा गया है। 12 × 9 = 108, जो संपूर्ण ब्रह्मांडीय व्यवस्था का संकेत देता है।
इसके अलावा ऋषियों की एक मान्यता 27 नक्षत्रों पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। 27 × 4 = 108, जिसे अत्यंत पवित्र संख्या माना गया है।
संपूर्ण जगत की गति का प्रतीक
इन सभी मान्यताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि 108 न केवल आध्यात्मिक साधना का आधार है, बल्कि यह संपूर्ण जगत, प्रकृति और ब्रह्मांड की गति का भी प्रतिनिधित्व करता है। यही कारण है कि जप-माला में 108 दानों की परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा से अपनाई जाती है।




